गांव कंवला अभी चर्चा में है जिसका कारण है गांव में बढ़ता पर्यटन आज ये
पोस्ट उसी स्थान के बारे में है - ग्राम कंवला चारो ओर से मां चंबल के आंचल
से घिरा है उसी में गांव का दक्षिण पश्चिमी क्षेत्र जिस में पर्यटन कि
असीम संभावनाएं है , गांव की आबादी क्षेत्र से दूर दक्षिण में चंबल के तट
पर दो विशाल शिलाखंड स्थित है - इन शिलखंडो में एबाबिल पक्षी के मिट्टी से
बने सुन्दर घरौंदे होने के कारण इन्हें गांव में " चिड़ी वाला पत्थर "भी
कहते है ,
इन्हीं दो विशाल शिलाखंडो की परिधि में चंबल अपना विराट स्वरूप लिए बहती है
, पश्चिमी हवा होने पर चंबल की विशाल , ऊंची ऊंची लहरें पानी स्थित
चट्टानों से अटखेलिया करते हुए रेत को धकेलते हुए किनारों को आकार देती है ,
इस प्रकार लगातार लहरों कि मार से रेत ने जमा होकर किनारों को बीच का
स्वरुप दे दिया है , यही कारण है कि आने वाले पर्यटक इसे मिनी गोवा की
संज्ञा देने लगे है , दिन भर चंबल की लहरे किनारों से टकराकर अपने विराट
स्वरूप का एहसास करवाती रहती है , शाम होते होते हवा के साथ कभी लहरों का
जोश बढ़ जाता है तो कभी
यह स्थान अत्यंत ही मनोरम है , यहां जाने हेतु आप भानपुरा से 8 कि मी दूर
गांव कंवला (कोहला) में आना होगा , गांव के आबादी क्षेत्र में गांव की
शुरुआत से आबादी क्षेत्र के अंतिम सिरे के बाद से कच्चा प्राकृतिक मार्ग है
जो सीधा इन दो चट्टानों तक जाता जहां आप अपने परिवार सहित , दोस्तो शित
जाकर मा चंबल के अनुपम सौंदर्य का आनंद ले सकते है ...
चित्र में आप मार्ग तथा स्थल की झलकियां देख सकते है
-Prince Pawan Porwal

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